Artificial eclipses: अंतरिक्ष में कृत्रिम सूर्यग्रहण की तैयारी हो रही है. यूरोपीय स्पेस एजेंसी के प्रोबा-3 मिशन (PSLV-C59/PROBA-3) का मकसद सूर्य के कोरोना का अध्ययन करना है. सैटेलाइट की मदद से होने वाले आर्टिफिशियल एक्लिप्स के जरिए कोरोना की केस स्टडी करने का अच्छा मौका मिलेगा. क्या सूर्य का संपूर्ण रहस्य वैज्ञानिकों के नए प्रयास से खुल जाएगा? जिसके तहत सूर्य पर आर्टिफिशियल एकलिप्स, यानी कृत्रिम सूर्य ग्रहण की तैयारी की गई है.
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PSLV-C59/PROBA-3 Sun: ब्रह्मांड में सूर्य रौशनी और उर्जा का इकलौता केंद्र है. रोशनी के सात घोड़ों पर सवार सूर्य देव का मूल रंग सफेद है. लेकिन सूर्य हमें सुनहरा क्यों दिखाई देता है? ये सवाल नया नहीं है, लेकिन इस सवाल का जवाब सूर्य के और भी बड़े रहस्यों का दरवाजा खोलता है. ऐसी तमाम अनसुलझी पहेलियों को सुलझाने के लिए वैज्ञानिक आर्टिफिशियल एकलिप्स, यानी कृत्रिम सूर्य ग्रहण कराने जा रहे हैं.
सूर्यग्रहण का जिक्र हर वैदिक युग समेत सभी सभ्यताओं में मिलता है, जब पूर्ण ग्रहण के दौरान सूर्य का सिर्फ बाहरी किनारा दिखता है. इसे ही कोरोना कहा जाता है. कोरोना यानी सूर्य का बाहरी हिस्सा, जिसे पश्चिमी सभ्यताओं में रिंग ऑफ गॉड कहा गया, तो हमारे वेदों में ईश्वरीय नेत्र का अंतिम सत्य. लेकिन इसकी वैज्ञानिक जानकारी एक सीमा के बाद आज भी मौजूद नहीं.
ऐसी ही एक कोशिश है यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने, जिसके प्रोब रॉकेट के लिए लॉन्चिंग पैड और व्हीकल भारत की स्पेस एजेंसी ISRO ने तैयार किया.
‘कृत्रिम ग्रहण’ की तैयारी से सुलझेगी रहस्यमयी ‘सूर्य पहेली’?
नेहरू प्लेनेटेरियम की प्रोग्रामिग मैनेजर प्रेरणा चंद्रा के मुताबिक, 'सूर्य के बाहरी वातावरण, जिसे कोरोना कहा जाता है, उसे सूर्य ग्रहण के दौरान ही समझ सकते हैं. ये जो सेटेलाइट है वो सूर्यग्रहर की आर्टिफिशिल स्थिति क्रियेट करेगा.'
सूर्य पर कृत्रिम ग्रहण लगाने की ये पहली कोशिश है. यूरोपियन एजेंसी के दोनों प्रोब लॉन्च हो चुके हैं. लेकिन सूर्य पर कृत्रिम ग्रहण कितना चुनौती पूर्ण होगा? ये सवाल वैज्ञानिकों के सामने सबसे बड़ी पहेली बना हुआ है.
बड़ी पहेली सूर्य का आकार है. इसका अभी तक अनुमान लगाया गया है कि सूर्य का व्यास 13 लाख 91 हजार किलोमीटर यानी धरती के व्यास से 109 गुना बड़ा है. सूर्य इतना बड़ा है कि वैज्ञानिक अनुमानों के मुताबिक इसमें पृथ्वी जितने बड़े 13 लाख ग्रह समा सकते हैं. साइंटिफिक रिसर्च के मुताबिक सूर्य अपने से 20 लाख किलोमीटर दूर किसी भी चीज को अपने अंदर खींच सकता है. ऐसे में सवाल ये उठता है कि यूरोपियन एजेंसी का प्रोब रॉकेट कितने दूर से सूर्य के सबसे रहस्यमयी क्षेत्र का अध्ययन करेगा?
इतने बड़े सूर्य पर ग्रहण कैसे लगाएगा?
सूर्य ग्रहण अपने आप में धरती के लिए जितनी दुर्लभ घटना है, उतना ही रहस्यमयी भी. क्योंकि सूर्य की चमक इतनी होती है, कि बिना ग्रहण के वो हिस्सा देख ही नहीं सकते. वो हिस्सा है कोरोना. यानी सूर्य का बाहरी मंडल.
सूर्य का रहस्यमयी ‘कोरोना’- तापमान 10 लाख से 30 लाख डिग्री सेल्सियस
375 साल बाद दिखाई देता है धरती के एक हिस्से में पूर्ण कोरोना. सूर्य के बारे में इन दो तथ्यों से आप अंदाजा लगा सकते हैं, कि कोरोना ना सिर्फ दृर्लभ दृश्य है, बल्कि अपनी बनावट और तापमान में वेरिएशन, यानी विविधता की वजह से रहस्यमयी है. इसे समझने के लिए जरूरी है पूर्ण सूर्य ग्रहण की स्थिति. लेकिन ये इतना दुर्लभ है, कि धरती के एक हिस्से में पूर्ण सूर्यग्रहण और पूर्ण कोरोना 375 साल बाद ही दिखता है.
जब तक इस कोरोना का पूरा अध्ययन हमारे सामने नहीं होता, सूर्य के भीतरी रहस्यों से परदा नहीं हटेगा. सूरज का जो टेंपरेचर है वो वैज्ञानिकों के लिए जिज्ञासा का विषय है. क्योंकि कोर से लेकर कोरोना तक टेंपरेचर बहुत वैरी करता है. ये जिज्ञासा इंसानों को सूर्य को समझने के लिए प्रेरित करती है.
सूर्य पर कैसे लगेगा कृत्रिम ग्रहण?
सेटेलाइट-1 धरती से ऊपर
क्रोनोग्राफ 60,000 किमी
सेटेलाइट-2 दोनों प्रोब सेटेलाइट
ऑक्ल्टर 150 मीटर की दूरी पर
इस मिशन के लिए यूरोपियन एजेंसी के दो प्रोब यान- ऑकल्टर और क्रोनोग्राफ धरती से ऊपर 60,000 किलोमीटर दूर स्थापित किए गए हैं. दोनों के बीच डेढ़ सौ मीटर की दूरी है. ये दोनों प्रोब सूर्य की सीधी रेखा में हैं. इसमें जो कोरोनाग्राफ यान है, ये खास तकनीक के जरिए सूर्य की रौशनी को ब्लॉक करेगा, जिसकी वजह से कोरोना को देख पाना संभव हो पाएगा.
आसान भाषा में समझें, तो सूर्य की तरफ भेजे गए दोनों प्रोब यान कुछ ऐसे काम करेंगे, जैसे आप सूर्य की तरफ अंगूठे को आगे करके, उसके क्लोज शॉट्स में सूर्य की किरणों को रोकने की कोशिश करते हैं.
यूरोपियन एजेंसी के प्रोब यान इसी तरह के दृश्य अंतरिक्ष में क्रियेट करेंगे, जिससे उस कोरोना को देखना आसान हो जाएगा, जिसकी चमक ग्रहण के दौरान इतनी तेज होती है, कि नंगी आंखों से देखने पर इंसान अंधेपन का शिकार हो जाता है.
आपको याद होगा कि सूर्यग्रहण के दौरान ये चेतावनी बार बार दी जाती है कि इसे आप सीधी आंखों से नहीं देखें. इसकी वजह है, कोरोना का का तापमान जो 30 लाख डिग्री सेल्सियस तक चला जाता है. ये भी अनुमानित गणना है, क्योंकि इतना ताप नापने का यंत्र धरती पर नहीं बन सका है. बस चमक के आधार पर आकलन किया जाता है.
सूर्य की सतह का तापमान 600 डिग्री C, सूर्य के केन्द्र का तापमान 1.5 करोड़ डिग्री C वहीं सूर्य का बाहरी तापमान 10 से 30 लाख डिग्री C है. सूर्य के तापमान में इसी रहस्यमयी अंतर को आज का विज्ञान समझने की कोशिश कर रहा है.
दिल्ली यूनिवर्सिटी के इतिहास विभाग के बी.डब्ल्यू. पांडे कहते हैं कि सूर्य को तब देवता माना गया. जब आज का विज्ञान विकसित नहीं था. तब भी सूर्य का प्रकाश, उसकी उर्जा से धरती पर जीव और वनस्पतियां फल फूल रही थीं. इस विषय पर वैदिक रिसर्च एक्सपर्ट्स का कहना है कि सनातन धर्म में सूर्य की उम्र 4.5 अरब साल बताई गई है. 14 मनवंतर के बाद एक सूर्य परिवर्तित होता है. सूर्य प्राण देवता है, अभी ये अस्त नहीं होने वाला नहीं है ऐसे में कृत्रिम सूर्य ग्रहण की कोई आवश्यकता ही नहीं थी.
सूरज बुझ जाएगा तो धरती का क्या होगा?
अब सवाल ये उठता है कि क्या सूर्य ईंधन कभी किसी काल में खत्म हो जाएगा. इसका जवाब जानने के लिए बहुत कुछ समझना होगा. सूर्य के अस्तित्व पर दुनिया के सबसे पुराने ग्रंथ ऋगवेद का ये श्लोक बताता है, सूर्य एक नहीं, ब्रह्मांड की 7 दिशाओं में 7 सूर्य और उनका पूरा मंडल है. लेकिन विज्ञान अभी एक में ही जीवन की तलाश कर पाया है.
सूर्य दिखने में स्थिर है, लेकिन वो अपनी जगह घूमते हुए आकाशगंगा की परिक्रमा करता है. आकाशगंगा में सूर्य एक सेकेंड में 220 किलोमीटर की दूरी तय करता है. ये ठीक वैसे ही है, जैसे धरती सूर्य की परिक्रमा करती है. ये जानकारी वैदिक ग्रंथो में लिखित है.
सफेद है सूर्य का प्रकाश मंडल
वैदिक गणना के मुताबिक सूर्यरथ के 7 घोड़े धरती पर उतरने वाली सूर्य किरण के 7 रंगों के प्रतीक है. विज्ञान भी ये मानता है, कि सूर्य अथाह उर्जा की वजह से इतना चमकीला है कि वो सफेद दिखता है. लेकिन लेकिन धरती पर आते आते उसकी किरणें 7 रंगों में बदल जाती है. वेदों में बकायदा हर किरण के नाम भी दिए गए हैं. इसी वजह यानी अपने तापमान की वजह से सूरज सुनहरा दिखता है.
सूर्य गैस और धातुओं के मिश्रण से बना है. सूर्य की संरचना में सबसे ज्यादा हाइड्रोजन और हीलियम है. इसके बाद कार्बन, नाइट्रोजन और ऑक्सीजन की भी मात्रा है. इन गैसों के अलावा लोहा, सिलिकॉन, मैनिशियम और सल्फर भी है.
इन सभी गैसों और धातुओं का फ्यूजन किस पैटर्न पर होता है कि सूर्य के कोर से लेकर कोरोना तक तापमान एक जैसा नहीं रहता? इस बात को समझने के लिए सूर्य की धरातल पर उतरना तो कभी मुमकिन होगा नहीं, लेकिन यह जरूर हो सकता है, सूर्य के कोरोना क्षेत्र की स्टडी ही कुछ ऐसे रहस्यों का खुलासा कर दे, जो आज तक इंसानों के सामने पहेली बना हुआ है.